स्पर्श से वाणी के तुम्हारी , वो स्मृतियाँ फिर हो आई |
सोकर यादों के सिरहाने पर , आंखें फिर भर आई ||
नील-श्वेत अंबर में , मेघ श्याम भर आए |
अतृप्त-सी धरा पर , अंगारे बरसाये |
सूने हृदय के आँगन में , हर कली थी मुरझाई ||
स्पर्श से वाणी के तुम्हारी , वो स्मृतियाँ फिर हो आई |
सोकर यादों के सिरहाने पर , आंखें फिर भर आई ||
चक्षुओं में पानी जब आए , कर को भर-भर जाएं |
तप्त-रात्री सूर्य की किरणें , अग्नि-सी जलाएं|
दिवा-रात्रि एक कर डाली , निंद्रा नहीं आई ||
स्पर्श से वाणी के तुम्हारी , वो स्मृतियाँ फिर हो आई |
सोकर यादों के सिरहाने पर , आंखें फिर भर आई ||
तुम्हारे आँचल की छाया में , सारी दुनिया थी समाई |
आज फिर आकर तुमने , मधुर स्वपन की याद दिलाई |
हृदय से लगाकर तुम्हारी पवित्रता, मृदा मेरी जगमगाई ||
स्पर्श से वाणी के तुम्हारी , वो स्मृतियाँ फिर हो आई |
सोकर यादों के सिरहाने पर , आंखें फिर भर आई ||
PARAMVEER
MAY 23rd,2009
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Sunday, May 24, 2009
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